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विकासखंड - नैनपुर, ज़िला - मंडला (मध्य प्रदेश)

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

शुष्क सेल, चित्र और कार्यविधि


 शुष्क सेल या शुष्क बैटरी शुष्क सेल का एनोड और कैथोउ का कार्य चित्र, किस धातु का बना होता है : वें बैट्री या सेल जिनमें तुलनात्मक रूप से बहुत कम नमी होती है अर्थात इनमें विद्युत अपघट्य पदार्थ में नमी बहुत कम होती है और इसलिए ही इन सेलों या बैटरीयों को शुष्क सेल कहा जाता है। अर्थात वे सेल जिनमें अन्य सेलों की तुलना में विद्युत अपघटय में नमी बहुत कम होती है उसे शुष्क सेल कहते हैं, इसमें विद्युत अपघट्य पदार्थ को पेरट के रूप में काम में लिया जाता है।

शुष्क सेल बैटरी कैसे कार्य करता है (How Do Dry Cell Batteries work2)

शुष्क सेल बैट्री में रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करके विद्युत धारा उत्पन्न की जाती है, सामान्यतया इन सेलों में जिंक और कार्बन या जिंकऔर मैंगनीज डाइऑक्साइड का उपयोग किया जाता है।

इन पदार्थों को बैटरी के विद्युत अपघट्य में मिलाया जाता है अर्थात इन दोनों को पेस्ट बनाकर विद्युत अपघट्य पदार्थ के रूप में काम में लिया जाता है, ये पदार्थ आपस में रासायनिक क्रिया करता है अर्थात कार्बन पा मैंगनीज डाइऑक्साइड पदार्थ जिंक के साथ किया करता है और इस रासायनिक अभिक्रिया द्वारा रासायनिक पदार्थ विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करता है जिससे विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है।

इस विद्युत धारा को बैटरी के धन और ऋण सिरों अर्थात इलेक्ट्रोड के द्वारा प्राप्त कर लिया जाता है।


शुष्क सेल बैटरी की संरचना

शुष्क सेल लेक्लांश सैल पर आधारित होता है, यह सेल 2n (जिंक) धातु का गोलाकार सिलिंडर का बना होता है यह एनोड की तरह कार्य करता है। इस सेल के मध्य में ग्रेफाईट की छड़ लगी हुई रहती हैं जो कैधोड का कार्य करती है। अतः इस प्रकार के सेल में zn पदार्थ को एनोड की तरह काम में लिया जाता है और प्रेफाईट पदार्थ को कैचोड की तरह काम में लिया जाता है।

ग्रेफाईट की छड के पास कार्बन (Carbon) और MnO के मिश्रण का गिला पेस्ट भरा हुआ रहता है तथा जिंक धातु के गोलाकार पात्र

में NHACI और Zncl का गिला पेस्ट भरा हुआ रहता है।

इस सेल को चारों तरफ से विद्युत रोधी बनाने के लिए मोटे कागज़ का आवरण लगाया जाता है। जब इसे सेल को विद्युत परिपथ में जोड़ा जाता है।

इलेक्ट्रॉन त्यागकर Zn - में परिवर्तित हो जाता है, ये इलेक्ट्रॉन बाह्य परिपथ से होते हुए कैथोड पर पहुँचते हैं और कैथोड द्वारा ग्रहण कर लिए जाते है, कैथोड पर उपस्थित NH| आपन इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करके उदासीन हो जाते हैं और यहाँ


तब Zn,


पर MnO2 का अपचयन हो जाता है।


ऐनोड पर क्रिया निम्न अभिक्रिया होती है


Zn - Zn* + 2e


कैथोड़ पर क्रिया निम्न होती है


2 Oz 2NH4 + 2e - 2MNO(OH) + 2NH


इस क्रिया में बनी अमोनिया गैस 2n2* आयन से क्रिया कर लेती है तथा [Zn(NHIJAP* आयन बना देती है।

शून्य कोटि की अभिक्रिया किसे कहते है?

 


शून्य कोटि अभिक्रिया

वे रासायनिक अभिक्रियाऐँ जिनमेँ समय के साथ-साथ
 अभिकारक पदार्थ की सान्द्रता मेँ कोई परिवर्तन नहीँ होता है ।
वे अभिक्रयाएँ शून्य कोटि अभिक्रियाएँ कहलाती हैँ ।
या
वे रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमेँ अभिक्रिया की दर अभिकारक पदार्थोँ के सक्रिय द्रव्यमानोँ की शून्य घात के समानुपाती होती हैँ , शून्य कोटि अभिक्रिया कहलाती हैँ ।

माना किसी पदार्थ की सान्द्रता a mole है ,
 तथा t sec पश्चात् पदार्थ के  x mole वियोजित हो जाता है । तब -
अभिक्रिया की दर ∝ [A]

       dx/dt  ∝   [A]

शून्य कोटि अभिक्रिया के लिए  

dx/dt  =    k [A]

जहाँ , k = शून्य कोटि अभिक्रिया के लिए वेग स्थिरांक

         dx/dt = k (a - x) 0

        dx/dt    =   k

       dx = k  dt

दोनो पक्षोँ  का समाकलन करने पर ,

           ∫ dx=  ∫ k dt

              x = kt +I
जहाँ I =समाकलन नियतांक
प्रारम्भ मेँ
जब t = 0 sec

तब  x = 0

उपरोक्त 0 = k  × 0 + I   ⇒   I = 0

I का मान समीकरण (1) मेँ रखने पर

x  = kt

k  =  x/t

शून्य कोटि अभिक्रियाओँ के अभिलक्षण :-

1. शून्य कोटि अभिक्रिया के लिए अभिक्रिया के वेग
स्थिराँक का मात्रक सान्द्रण समय KI-¹ अर्थात्
मोल लीटर KI-¹   सेकण्ड KI-¹  होता है ।
2. इस अभिक्रिया के लिए सान्द्रता तथा अभिक्रिया की
दर के बीच ग्राफ खीँचने तर एक सरल रेखा प्राप्त होती है ,
अर्थात अभिक्रिया की दर पदार्थ की सान्द्रता पर निर्भर नहीँ करता है 
|x/dt   का t के विपरीत आलेख समय अक्ष के समान्तर
एक सरल रेखा होती है ।

3. अभिक्रिया के किसी भी आंशिक परिवर्तन के
पूर्ण होने मेँ लगा समय प्रारम्भिक सान्द्रता 'a' के अनुक्रमानुपाती होता है ।
5. शून्य कोटि अभिक्रियाओँ के पूर्ण होने मेँ एक निश्चित समय लगता है ।

* अर्द्धआयु काल :-
 
वह समय जिसमेँ कोई अभिकारी पदार्थ अपनी
प्रारम्भिक मात्रा का आधा शेष रह जाता है
,वह उस पदार्थ का अर्द्धआयु काल कहलाता है ।
जब T = t½

तब x = a/2

उपरोक्त मान समीकरण (2) मेँ रखने पर ,

   k  =  a /2 /t½
         
t½  =  a / 2k  (   ∵ 2 तथा k = नियतांक )

t½  ∝ a

दो भाईयों से पता चली थी बंदर से इंसान बनने की बात


 पृथ्वी पर जीवन कैसे पनपा? और इंसान कैसे आए? इसको लेकर आज भी कोई एकमत राय नहीं है। लेकिन, हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि हमारे पूर्वज बंदर थे और समय के साथ धीरे-धीरे हमने खुद को विकसित किया। लेकिन हम बंदर से इंसान कैसे बने? इस बात का पता लगाया था चार्ल्स डार्विन ने।


डार्विन की किताब 'ऑन द ओरिजन ऑफ स्पेशीज बाय मीन्स ऑफ नेचुरल सिलेक्शन' 24 नवंबर 1859 को ही पब्लिश हुई थी। इस किताब में एक चैप्टर था, 'थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन'। इसी में बताया गया था कैसे हम बंदर से इंसान बने?

चार्ल्स डार्विन का मानना था कि हम सभी के पूर्वज एक हैं। उनकी थ्योरी थी कि हमारे पूर्वज बंदर थे। लेकिन कुछ बंदर अलग जगह अलग तरह से रहने लगे, इस कारण धीरे-धीरे जरूरतों के अनुसार उनमें बदलाव आने शुरू हो गए। उनमें आए बदलाव उनके आगे की पीढ़ी में दिखने लगे।


उन्होंने समझाया था कि ओरैंगुटैन (बंदरों की एक प्रजाति) का एक बेटा पेड़ पर, तो दूसरा जमीन पर रहने लगा। जमीन पर रहने वाले बेटे ने खुद को जिंदा रखने के लिए नई कलाएं सीखीं । उसने खड़ा होना, दो पैरों पर चलना, दो हाथों का उपयोग करना सीखा।

पेट भरने के लिए शिकार करना और खेती करना सीखा। इस तरह ओरैंगुटैन का एक बेटा बंदर से इंसान बन गया। हालांकि,ये
बदलाव एक-दो सालों में नहीं आया बल्कि इसके लिए करोड़ों साल लग गए।