रविवार, 27 दिसंबर 2020
व्यावसायिक विषय कृषि और आई. टी. के प्रशिक्षक भर्ती संबंधित आदेश हुए जारी
शनिवार, 26 दिसंबर 2020
भौतिक विज्ञान की प्रमुख शाखाओं की सूची
भौतिकी (Physics) शब्द ग्रीक भाषा फ्यूसिका (Phusika) से लिया गया है जिसका अर्थ है प्रक्रति. इसमें प्रक्रति और दर्शनों का अध्ययन किया जाता है. परन्तु भौतिकी की आधुनिक परिभाषा में उर्जा और पदार्थ ओर उनके बीच के संबंधों का अध्यन किया जाता है. आपको बता दें कि न्यूटन और आइंस्टाइन को भौतिकी का जनक माना जाता है. आइये इस लेख में भौतिकी की प्रमुख शाखाओं की सूची के बारे में अध्ययन करें.
भौतिकी को मुख्य दो भागों में बांटा गया है:1. चिरसम्मत भौतिकी (Classical Physics)
2. आधुनिक भौतिकी (Modern Physics)
1. चिरसम्मत भौतिकी (Classical Physics)
1900 ई. तक की भौतिकी को चिरसम्मत भौतिकी माना जाता है. इसकी प्रमुख उपशाखाएं इस प्रकार हैं:
B. प्रकाशिकी (Optics): इसमें प्रकाश तथा इसके उत्पादन, संचरण एवं संसूचन (detection) से सम्बंधित सभी घटनाओं का अध्ययन किया जाता है.
C. ध्वनि एवं तरंग गति (Sound and Wave motion): इसके अंतर्गत तरंग गति एवं ध्वनि का उत्पादन तथा संचरण का अध्ययन किया जाता है.
D. ऊष्मा एवं ऊष्मागतिकी (Heat and Thermodynamics): इस शाखा में ऊष्मा की प्रक्रति, उसका संचरण एवं उसके कार्य में परिवर्तन का अध्ययन किया जाता है.
E. विद्युत-चुम्बकत्व (Electromagnetism): इसमें विद्युत, चुम्बकत्व एवं विद्युत-चुम्बकीय विकिरण का अध्ययन किया जाता है.
A. परमाणु भौतिकी (Modern Physics): इसमें परमाणु की संरचना एवं विकिरण के साथ उसकी अन्योन्यक्रियाओं (interactions) का अध्ययन किया जाता है.
B. नाभिकीय भौतिकी (Nuclear Physics): इसमें नाभिक की संरचना एवं नाभिकीय कणों की अन्योन्यक्रियाओं (interactions) का अध्ययन किया जाता है.
C. क्वांटम यान्त्रिकी (Quantum Physics): यह एक विशेष प्रकार की यान्त्रिकी है जिसमें अणुओं, परमाणुओं और नाभिकीय कणों के व्यवहार का वर्णन किया जाता है.
D. आपेक्षिकता का सिद्धांत (Theory of Relativity): 1905 में आइंस्टाइन ने आपेक्षिकता का विशिष्ट (special) सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसमें उन नियमों का वर्णन है जो बहुत ही उच्च वेग से चलने वाले कणों की गति पर लागू होते हैं. बाद में 1915 में आइंस्टाइन ने आपेक्षिकता का व्यापक (general) सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसमें गुरुत्वाकर्षण की व्याख्या की गई.
F. म्ध्याकार भौतिकी (Mesoscopic Physics): आजकल स्थूल (macroscopic) तथा सूक्ष्म (microscopic) प्रभाव क्षेत्रों के मध्य एक ऐसा क्षेत्र उभर कर आया है जिसमें दशक (decades) या कुछ सैकड़ों (hundreds) परमाणुओं के समूहों का अध्ययन किया जा रहा है.
भौतिकी एक मूलभूत विज्ञान है जिसके नियमों का उपयोग सभी प्रौद्योगिकियों तथा विज्ञान की अन्य सभी शाखाओं में किया जाता है. एक और जहां भौतिकी ने मानव को सभी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाओं से सम्पन्न किया है वहीं दूसरी और भौतिकी विश्व के अनेक रहस्यों की सफल व्याख्या करके मानव को जीवन के दार्शनिक पक्ष को समझने में भी सहायता की है.
राजनीति विज्ञान का आधुनिक दृष्टिकोण
राजनीति विज्ञान की आधुनिक अवधारणाओं की दृष्टि से जार्ज कैटलिन, डेविड ईस्टन, हैराल्ड लासवैल व काप्लान विशेष उल्लेखनीय है। इन विद्वानों ने राजनीति विज्ञान संबंधी अपने कथ्यों में राजनीति के वास्तविक एवं व्यावहारिक सन्दर्भों पर बल देते हुये उसे शक्ति, प्रभाव, राजनीतिक औचित्य एवं सत्ता का अध्ययन माना है।
आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक राजनीति शास्त्रियों द्वारा राजनीति विज्ञान के बारे में जो विचार प्रस्तुत किये हैं उनको निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है-
(१) राजनीति विज्ञान मानव क्रियाओं का अध्ययन है- राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान मानव के राजनीतिक व्यवहार एवं क्रियाओं का अध्ययन करता है। मानव व्यवहार को गैर राजनीतिक-कारक भी प्रभावित करते है। इन सभी कारकों का राजनीति विज्ञान में अध्ययन किया जाता है। ए. हर्ड एवं एस. हंटिग्टन का कथन है ’’राजनीतिक व्यवहारवाद शासन को मानव और उसके समुदायों के कार्यों की एक प्रक्रिया के रूप में स्वीकारता है। हस्जार व स्टीवेन्सन का यह विचार है कि ’’राजनीति विज्ञान अपने अध्ययन क्षेत्र में प्राथमिक रूप में व्यक्तियों के पारस्परिक व सामूहिक तथा राज्य एवं राज्यों के मध्य प्रकट शक्ति संबंधों से सम्बंधित है।
(२) राजनीति विज्ञान शक्ति का अध्ययन है- कैटलिन व लासवैल इस विचार के समर्थक है। दोनों के विवेचन का मुख्य आधार मनोविज्ञान है। कैटलिन ने 1927-28 में राज्य के स्थान पर मनुष्य के राजनीतिक क्रिया कलाप के अध्ययन पर बल देते हुये राजनीति को प्रभुत्व एवं नियंत्रण के लिये किये जाने वाला संघर्ष बताया है। उसके मतानुसार संघर्ष का मूल स्रोत मानव की यह इच्छा रही है कि दूसरे लोग उसका अस्तित्व मानें। 1962 में अपनी पुस्तक सिस्टेमैटिक पॉलिटिक्स में कैटलिन ने लिखा है- नियंत्रण भावना के कारण जो कार्य किये जाते है तथा नियंत्रण की भावना पर आधारित संबंधों की इच्छाओं के कारण जिस ढाँचे व इच्छाओं का निर्माण होता है, राजनीति शास्त्र का संबंध उन सबसे है। अन्य शक्तिवादी विचारक लासवैल की मान्यता है कि समाज में कतिपय मूल्यों व मूल्यवान व्यक्तियों की प्राप्ति के लिये हर व्यक्ति अपना प्रभाव डालने की चेष्टा करता हैं तथा प्रभाव चेष्टा में शक्ति भाव निहित रहता है। अतः लासवैल के अनुसार 'राजनीति शास्त्र का अभीष्ट वह राजनीति है जो बतलाये कि कौन, क्या, कब और कैसे प्राप्त करता है।' उसके अनुसार राजनीतिक क्रियाकलाप का प्रारंभ उस परिस्थिति से होता है जिसमें कर्ता विभिन्न मूल्यों की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करता है तथा शक्ति जिसकी आवश्यक शर्त होती है।
(३) राजनीति विज्ञान राज-व्यवस्थाओं का अध्ययन है- इस दृष्टिकोण के समर्थक डेविड ईस्टन, आमण्ड, आर. केगन आदि है। यह दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान को समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण में परिभाषित करता हैं। इनकी मान्यता है कि सम्पूर्ण समाज स्वयं में एक व्यवस्था है और राज व्यवस्था इस सम्पूर्ण समाज व्यवस्था की एक उपव्यवस्था है तथा वह उसके एक अभिन्न भाग के रूप में होती है। राज्य व्यवस्था में अनेक क्रियाशील संरचनाएॅ होती हैं जैसे संविधान सरकार के अंग, राजनीतिक दल, दबाब समूह, लोकमत एवं निर्वाचन एवं मानव-व्यववहार इस व्यवस्था का अभिन्न भाग है। संक्षेप में इन विद्वानों की मान्यता है कि राजनीति विज्ञान सम्पूर्ण समाज व्यवस्था के अंग के रूप में राज-व्यवस्था की इन संरचनाओं की पारस्परिक क्रियाओं एवं संबंधों तथा मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान राजव्यवस्था के अध्ययन के अन्तर्गत निम्न तथ्यों पर अधिक बल देता है -संपूर्ण समाज व्यवस्था के अंग के रूप में राजनीतिक प्रक्रिया का अध्ययन, व्यवस्था की संरचना एवं समूहों के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन।
(४) राजनीति विज्ञान निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है- इस दृष्टिकोण के समर्थक राजनीतिशास्त्री यह मानते है कि राजनीति विज्ञान सरकार का अध्ययन करते हुये समाज या राज्य में विद्यमान परिस्थितियों के सन्दर्भ में सरकार या शास्त्र के नीति संबंधी निर्णय लेने की प्रक्रिया का भी अध्ययन करता है। इस कारण राजनीति विज्ञान ऐसा विज्ञान है जो किसी शासन की नीति-प्रक्रिया एवं उसके द्वारा नीति निर्माण का अध्ययन करता है विशेषकर इन दोनों को प्रभावित करने वाले कारकों के संदर्भ में, इस दृष्टिकोण की मान्यता है कि मानव प्रकृति के सन्दर्भ में सरकार द्वारा नीति निर्माण-प्रक्रिया का का अध्ययन किया जाना चाहिए। वास्तविक राजनीतिक जीवन में शासन के नाम पर निर्णय लेने का कार्य स्वयं व्यक्ति करते हैं और इसलिये निर्णय निर्माण प्रक्रिया पर निर्णयकर्ताओं के व्यक्तित्व, अभिरूचि संस्कृति, धर्म, राजनीतिक विचारधारा, मानसिक स्तर निर्णय लेने की शक्ति आदि तत्वोंं का व्यापक प्रभाव पड़ता है।
अतः यह कहा जा सकता है कि आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान मनुष्य के सामाजिक राजनीतिक जीवन का अध्ययन करता है। इसके अन्तर्गत राजनीतिक प्रक्रियाओं के साथ साथ राजनीतिक संगठनों का भी अध्ययन किया जाता है। पिनॉक एवं स्मिथ के अनुसार क्या है (यथार्थ) तथा क्या होना चाहिये (आदर्श) और इन दोनों के बीच यथासंभव समन्वय कैसे प्राप्त किया जाये, इस दृष्टि से हम सरकार तथा राजनीतिक प्रक्रिया के व्यवस्थित अध्ययन को राजनीति विज्ञान कहते है।
राजनीति विज्ञान के क्षेत्र:
आधुनिक युग में राजनीति विज्ञान का क्षेत्र अत्यधिक विकसित है। शक्ति के सन्दर्भ में राजनीति की सर्वव्यापकता ने उसे हर तरफ पहुंचा दिया है और न केवल सामाजिक बल्कि व्यक्गित जीवन के भी लगभग सभी पक्ष राजनीतिक व्यवस्था के अधीन है। राजनीति की सर्वव्यापकता ने जहाँ एक तरफ राजनीतिक व्याख्याओं की लोकधर्मिता सिद्ध की है वहीं उसने राजनीतिक क्या है, इस संबंध में अस्पष्टता व भ्रम भी पैदा किया हैं। इसके बावजूद राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र को राज्यप्रधान व राज्येतर सन्दर्भों में भलीभांति समझा जा सकता है।
राज्यप्रधान संदर्भ में राज्य की अवधारणाओं- समाजवाद, लोकतंत्र इत्यादि, सरकार या संगठन संविधान वर्णित व वास्तविक व्यवहार संबंधी, सरकारी पद व संस्थाओं के पारस्परिक संबंध, निर्वाचन, व्यवस्थापिका व न्यायपालिका के संगठनात्मक व प्रयोगात्मक पक्ष तथा राज्य की व्याख्या से सम्बंधित राजनीतिक विचारधारा व अवधारणाएॅ, उत्पत्ति के, राज्य क्रियाशीलता के सिद्धान्त, राज्य-परक विचारधाराएँ स्वतंत्रता, समानता, अधिकार इत्यादि।
राज्येत्तर सन्दर्भ में राजनीति की प्रक्रियात्मक वास्तविकता, राजनीति व्यवस्था के विभिन्न दृष्टिकोण, राज्येत्तर संस्थाएॅ जैसे राजनीतिक दल, दबाव व हित समूह, गैर राज्य-प्रक्रियाएॅ व उनका विस्तार, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक वास्तविकताएॅ तथा जटिलताएॅ इत्यादि आती हैं। प्रतिनिधित्व के सिद्वान्तों व विधियों को भी इसी सन्दर्भ में समझा जा सकता है।
राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र के बारे में आधुनिक दृष्टिकोण की कुछ आधारभूत मान्यताऐं हैं जैसे- अध्ययन क्षेत्र के निर्धारण में यथार्थपरक दृष्टिकोण अपनाना, राजनीतिक विज्ञान की विषय वस्तु को अन्तर-अनुशासनात्मक दृष्टिकोण के अन्तर्गत समझा जाये, राजनीति विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धति व उपागमों को प्रयोग में लाया जाये।
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के क्षेंत्र को निम्न बिंदुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है-
(१) मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन- आधुनिक दृष्टिकोण मानव के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर बल देता है। यद्यपि पर मानव व्यवहार को प्रभावित करने बल्कि गैर-राजनीतिक तत्वों का भी अध्ययन करता है उसकी मान्यता है कि मानव व्यवहार को यथार्थ रूप में समझने के लिये उन सभी गैर राजनीतिक भावनाओं, मान्यताओं एवं शक्तियों के अध्ययन को सम्मिलित किया जाये जो मानव के राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करते है।
(२) विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन - आधुनिक राजनीति विज्ञान मुख्यतः शक्ति, प्रभाव, सत्ता, नियंत्रण, निर्णय प्रक्रिया आदि का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार ये ऐसी अवधारणाऐं है जिनकी पृष्ठभूमि में ही राजनीतिक संस्थाएॅ कार्य करती है। राजनीतिशास्त्री इन्हीं अवधारणाओं के परिप्रेक्ष्य में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करते है। इसी कारण इस प्रकार के अध्ययन को सत्ताओं का अनौपचारिक अध्ययन कहा गया है।
(३) राजनीति विज्ञान समस्याओं एवं संघर्षों का अध्ययन - आधुनिक राजनीतिशास्त्री यथा प्रोफेसर डायक एवं पीटर ओडगार्ड राजनीति शास्त्र को सार्वजनिक समस्याओं व संघर्षों का अध्ययन क्षेत्र में शामिल करते है। उनके मत में मूल्यों एवं साधनों की सीमितता के कारण उनके वितरण की समस्या पैदा होने से तनाव व राजनीति का प्रारंभ हो जाता है। वह राजनीतिक दलों के अतिरिक्त विभिन्न व्यक्तियों व समूहों में तक में फैल जाती हैं। प्रोफेसर डायक ने राजनीति को सार्वजनिक समस्याओं पर परस्पर विरोधी इच्छाओं वाले पात्रों के संघर्ष की राजनीति कहा है। पीटर ओडीगार्ड की मान्यता है कि इस संघर्ष में राजनीति के अलावा अन्य बाह्यतत्वों का नियंत्रण नहीं होना चाहिये।
(४) सार्वजनिक सहमति व सामान्य अभिमत का अध्ययन - कुछ विद्वानों के मत में राजनीति विज्ञान सार्वजनिक समस्याओं पर सहमति व सामान्य अभिमत का अध्ययन है। उनके विचार में संघर्ष संघर्ष के लिए ही नहीं वरन सामान्य सहमति व सामान्य अभिमत को प्रभावित करने के लिये होता है। इसीलिये एडवर्ड ने कहा है कि ‘किसी मसले को संघर्षमय बनाने अथवा सुलझाने वाली गतिविधियों (समझौता वार्ता, तर्क-वितर्क, विचार विमर्श शक्ति प्रयोग आदि) सभी राजनीति का अंग है।’’
उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि आधुनिक दृष्टिकोण के विद्धानों में राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के संबंध में कुछ मतभेद होने के बावजूद कुछ आधारभूत बातों पर सहमति है, जैसे सभी की मान्यता है कि राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र यथार्थवादी हो, इसके अध्ययन में अंतर-अनुशासनात्मक दृष्टिकोण व वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग होना चाहिए। हालांकि यह सत्य है कि आधुनिक राजनीतिशास्त्रियों का राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक प्रामाणिकता व सुनिश्चितता का दावा अभी पूर्ण नहीं हुआ है।
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020
इस बार बोर्ड परीक्षा में 30 फीसदी वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे जाएंगे, दीर्घ उत्तरीय नहीं होंगे
अब पुराने रटे-रटाए प्रश्नों को याद कर विद्यार्थी बोर्ड परीक्षा में बेहतर अंक नहीं ला पाएंगे, बल्कि उन्हें पूरे चैप्टर को गहराई से पढ़ना होगा। माध्यमिक शिक्षा मंडल (माशिम) ने सत्र 2020-21 की बोर्ड परीक्षा के पैटर्न में बदलाव किया है। परीक्षा तीन घंटे की होगी। अब सभी विषयों में 30 फीसदी वस्तुनिष्ठ आधारित प्रश्न होंगे, 30 फीसदी सब्जेक्टिव, 40 फीसदी तार्किक (समझ-परख) के प्रश्न रहेंगे। मंडल ने हर विषय के पूरे पाठ्यक्रम को तीन यूनिट में बांट दिया है। सभी यूनिट से प्रश्न पूछे जाएंगे। प्रश्नपत्र में अब दीर्घउत्तरीय प्रश्नों के बदले छोटे-छोटे प्रश्न पूछे जाएंगे, जिसका उत्तर पूरे चैप्टर को ठीक से समझकर पढ़ने के बाद ही दिया जा सकेगा। हर विषय के 100 अंक के प्रश्नपत्र होगा। इसमें एक, तीन या चार अंक के ही प्रश्न होंगे। पहले की तरह पहले बोर्ड परीक्षा में 25 फीसदी वस्तुनिष्ठ और 75 फीसदी लघु व दीर्घ उत्तरीय प्रश्न होते थे। मंडल की वेबसाइट पर मंगलवार को प्रश्न पत्र का ब्लू प्रिंट अपलोड कर दिया गया है। अब विद्यार्थी इसके माध्यम से परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं। साथ ही मंडल ने हर विषय का प्रश्न बैंक भी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। इससे विद्यार्थियों को परीक्षा की तैयारी करने में आसानी होगी। मंडल का मानना है कि परीक्षा पैटरन को विद्यार्थियों के लिए पहले से आसान बना बिया गया है।
विषय पर आधारित एवं विश्लेषणात्मक प्रश्नों के विकल्प इस प्रकार होंगे
# पांच प्रश्नों में से कोई तीन प्रश्न हल करना अनिवार्य रहेगा।
# छह प्रश्नों में से कोई चार प्रश्न हल करना अनिवार्य रहेगा।
पहले यह होता था:
कुल अंक - 100
वस्तुनिष्ठ प्रश्न - 25 अंक अति लघु उत्तरीय प्रश्न- 10 अंक
(दो अंक के पांच प्रश्न)
लघु उत्तरीय प्रश्न -12 अंक (तीन अक के चार प्रश्न)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न -28 अंक (चार अक के सात प्रश्न)
निबंधात्मक प्रश्न-25 अंक (पाच अंक के पाच प्रश्न)
इस तरह का होगा बदलाव:
कुल अंक 100
30 अंक वस्तुनिष्ठ प्रश्न
30 अंक लघु उत्तरीय प्रश्न
(3-3 अंक के दस प्रश्न) (75 से 100 शब्द)
40 अंक तार्किक प्रश्न
(4-4 अंक के दस प्रश्न) (120 से 150 शब्द)
इस बार बोर्ड परीक्षा के पैटर्न में बदलाव किया गया है। अब वस्तुनिष्ठ प्रश्न अधिक होंगे और दीर्घ उत्तरीय प्रश्ननही होगे।इससे विद्यार्थियों में रटने की प्रवृति खत्म होगी और वे पूरे चैप्टर गहराई से पढ़ेंगे।
उद्यमिता (Entrepreneurship)
उद्यमिता (entrepreneurship) नये संगठन आरम्भ करने की भावना को कहते हैं। किसी वर्तमान या भावी अवसर का पूर्वदर्शन करके मुख्यतः कोई व्यावसायिक संगठन प्रारम्भ करना उद्यमिता का मुख्य पहलू है। उद्यमिता में एक तरफ भरपूर लाभ कमाने की सम्भावना होती है तो दूसरी तरफ जोखिम,अनिश्चितता और अन्य खतरे की भी प्रबल संभावना होता है।
परिचय:
जीवित रहने के लिए पैसा कमाना आवश्यक होता है। अध्यापक स्कूल में पढ़ाता है, श्रमिक कारखाने में काम करता है, डॉक्टर अस्पताल में कार्य करता है, क्लर्क बैंक में नौकरी करता है, मैनेजर किसी व्यावसायिक उपक्रम में कार्य करता है - ये सभी जीविका कमाने के लिए कार्य करते हैं। ये उन लोगों के उदाहरण हैं, जो कर्मचारी हैं तथा वेतन अथवा मजदूरी से आय प्राप्त करते हैं। यह मजदूरी द्वारा रोजगार कहलता है। दूसरी ओर एक दुकानदार, एक कारखाने का मालिक, एक व्यापारी, एक डॉक्टर, जिसका अपना दवाखाना हो इत्यादि अपने व्यवसाय से जीविका उपार्जित करते हैं। ये उदाहरण हैं स्वरोजगार करने वालों के। फिर भी, कुछ ऐसे भी स्वरोजगारी लोग हैं, जो न केवल अपने लिए कार्य का सृजन करते हैं बल्कि अन्य बहुत से व्यक्तियों के लिए कार्य की व्यवस्था करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के उदाहरण हैं : टाटा, बिरला आदि जो प्रवर्तक तथा कार्य की व्यवस्था करने वाले तथा उत्पादक दोनों हैं। इन व्यक्तियों को उद्यमी कहा जा सकता है।
उद्यमिता का अर्थ:
उद्यम करना एक उद्यमी का काम है जिसकी परिभाषा इस प्रकार है
- ‘‘एक ऐसा व्यक्ति जो नवीन खोज करता है, बिक्री और व्यवसाय चतुरता के प्रयास से नवीन खोज को आर्थिक माल में बदलता है। जिसका परिणाम एक नया संगठन या एक परिपक्व संगठन का ज्ञात सुअवसर और अनुभव के आधर पर पुनः निर्माण करना है। उद्यम की सबसे अधिक स्पष्ट स्थिति एक नए व्यवसाय की शुरूआत करना है। सक्षमता, इच्छाशक्ति से कार्य करने का विचार संगठन प्रबंध की साहसिक उत्पादक कार्यों व सभी जोखिमों को उठाना तथा लाभ को प्रतिपफल के रूप में प्राप्त करना है।’’
उद्यमी मौलिक (सृजनात्मक) चिंतक होता है। वह एक नव प्रवर्तक है जो पूंजी लगाता है और जोखिमउठाने के लिए आगे आता है। इस प्रक्रिया में वह रोजगार का सृजन करता है। समस्याओं को सुलझाता है गुणवत्ता में वृद्धि करता है तथा श्रेष्ठता की ओर दृष्टि रखता है।
अपितु हम कह सकते हैं उद्यमीता वह है जिसमें निरंतर विश्वास तथा श्रेष्ठता के विषय में सोचने की शक्ति एवं गुण होते हैं तथा वह उनको व्यवहार में लाता है। किसी विचार, उद्देश्य, उत्पाद अथवा सेवा का आविष्कार करने और उसे सामाजिक लाभ के लिए प्रयोग में लाने से ही यह होता है। एक उद्यमी बनने के लिए आपके पास कुछ गुण होने चाहिए। लेकिन, उद्यम शब्द का अर्थ कैरियर बनाने वाला उद्देश्य पूर्ण कार्य भी है, जिसको सीखा जा सकता है। उद्यमशीलता नये विचारों को पहचानने, विकसित करने एवं उन्हें वास्तविक स्वरूप प्रदान करने की क्रिया है। ध्यान रहे देश के आर्थिक विकास के अर्थ में उद्यमशीलता केवल बड़े व्यवसायों तक ही सीमित नहीं हैं। इसमें लघु उद्यमों को सम्मलित करना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। वास्तव में बहुत से विकसित तथा विकासशील देशों का आर्थिक विकास तथा समृद्धि एवं सम्पन्नता लघु उद्यमों के आविर्भाव का परिणाम है।
उद्यमी होने का महत्व:
उद्यमशीलता और उद्यम की भूमिका का आर्थिक व सामाजिक विकास में अक्सर गलत अनुमान लगाया जाता है। सालों से यह स्पष्ट हो चुका है कि उद्यमशीलता लगातार आर्थिक विकास में सहायता प्रदान करती है। एक सोच को आर्थिक रूप में बदलना उद्यमशीलता के अंतर्गत सबसे महत्वपूर्ण विचारशील बिन्दु हैं। इतिहास साक्षी है कि आर्थिक उन्नति उन लोगों के द्वारा सम्भव व विकसित हो पाई है जो उद्यमी हैं व नई पद्धति को अपनाने वाले हैं, जो सुअवसर का लाभ उठाने वाला तथा जोखिम उठाने के लिए तैयार है। जो जोखिम उठाने वाले होते हैं तथा ऐसे सुअवसर का पीछा करते हैं जो कि दूसरों के द्वारा मुश्किल या भय के कारण न पहचाना गया हो। उद्यमशीलता की चाहे जो भी परिभाषा हो यह काफी हद तक बदलाव, सृजनात्मक, निपुणता, परिवर्तन और लोचशील तथ्यों से जुड़ी हैं जो कि संसार में बढ़ती हुई एक नई अर्थव्यवस्था के लिए प्रतियोगिता के मुख्य स्रोत हैं।
यद्यपि उद्यमशीलता का पूर्वानुमान लगाने का अर्थ है व्यवसाय की प्रतियोगिता को बढ़ावा देना। उद्यमशीलता का महत्व निम्न बिन्दुओं से समझा जा सकता है :
- लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना : अक्सर लोगों का यह मत है कि जिन्हें कहीं रोजगार नहीं मिलता वे उद्यमशीलता की ओर जाते है, लेकिन सच्चाई यह है कि आजकल अधिकतर व्यवसाय उन्हीं के द्वारा स्थापित किए जाते हैं, जिनके पास दूसरे विकल्प भी उपलब्ध हैं।
- अनुसंधन और विकास प्रणाली में योगदान :लगभग दो तिहाई नवीन खोज उद्यमी के कारण होती है। अविष्कारों का तेजी से विकास न हुआ होता तो संसार रहने के लिए शुष्क स्थान के समान होता। अविष्कार बेहतर तकनीक के द्वारा कार्य करने का आसान तरीका प्रदान करते हैं।
- राष्ट्र व व्यक्ति विशेष के लिए धन-सम्पत्ति का निर्माण करना : सभी व्यक्ति जो कि व्यवसाय के सुअवसर की तलाश में है, उद्यमशीलता में प्रवेश करके संपत्ति का निर्माण करते हैं। उनके द्वारा निर्मित संपत्ति राष्ट्र के निर्माण में अहम भूमिका अदा करती है। एक उद्यमी वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करके अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देता है। उनके विचार, कल्पना और अविष्कार राष्ट्र के लिए एक बड़ी सहायता है।
सफल उद्यमी के गुण:
उद्यम को सफलतापूर्वक चलाने के लिए बहुत से गुणों की आवश्यकता पड़ सकती है। फिर भी निम्नलिखित गुण महत्वपूर्ण माने जाते हैं :
- पहल : व्यवसाय की दुनिया में अवसर आते जाते रहते हैं। एक उद्यमी कार्य करने वाला व्यक्ति होना चाहिए। उसे आगे बढ़ाकर काम शुरू कर अवसर का लाभ उठाना चाहिए। एक बार अवसर खो देने पर दुबारा नहीं आता। अतः उद्यमी के लिए पहल करना आवश्यक है।
- जोखिम उठाने की इच्छाशक्ति : प्रत्येक व्यवसाय में जोखिम रहता है। इसका अर्थ यह है कि व्यवसायी सफल भी हो सकता है और असफल भी। दूसरे शब्दों में यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक व्यवसाय में लाभ ही हो। यह तत्व व्यक्ति को व्यवसाय करने से रोकता है। तथापि, एक उद्यमी को सदैव जोखिम उठाने के लिए आगे बढ़ना चाहिए और व्यवसाय चलाकर उसमें सफलता प्राप्त करनी चाहिए।
- अनुभव से सीखने की योग्यता : एक उद्यमी गलती कर सकता है, किन्तु एक बार गलती हो जाने पर फिर वह दोहराई न जाय। क्योंकि ऐसा होने पर भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। अतः अपनी गलतियों से सबक लेना चाहिए। एक उद्यमी में भी अनुभव से सीखने की योग्यता होनी चाहिए।
- अभिप्रेरणा : अभिप्रेरणा सफलता की कुंजी है। जीवन के हर कदम पर इसकी आवश्यकता पड़ती है। एक बार जब आप किसी कार्य को करने के लिए अभिप्रेरित हो जाते हैं तो उस कार्य को समाप्त करने के बाद ही दम लेते हैं। उदाहरण के लिए, कभी-कभी आप किसी कहानी अथवा उपन्यास को पढ़ने में इतने खो जाते हैं कि उसे खत्म करने से पहले सो नहीं पाते। इस प्रकार की रूचि अभिप्रेरणा से ही उत्पन्न होती है। एक सफल उद्यमी का यह एक आवश्यक गुण है।
- आत्मविश्वास : जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अपने आप में आत्मविश्वास उत्पन्न करना चाहिए। एक व्यक्ति जिसमें आत्मविश्वास की कमी होती है वह न तो अपने आप कोई कार्य कर सकता है और न ही किसी अन्य को कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
- निर्णय लेने की योग्यता : व्यवसाय चलाने में उद्यमी को बहुत से निर्णय लेने पड़ते हैं। अतः उसमें समय रहते हुए उपयुक्त निर्णय लेने की योग्यता होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में उचित समय पर उचित निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए। आज की दुनिया बहुत तेजी से आगे बढ़ रही हैं यदि एक उद्यमी में समयानुसार निर्णय लेने की योग्यता नहीं होती है, तो वह आये हुए अवसर को खो देगा और उसे हानि उठानी पड़ सकती है।
उद्यमी के कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं :
- उद्यम के अवसरों की पहचान : विश्व में व्यवसाय करने के बहुत से अवसर हैं। इनका आधर मानव की आवश्यकताएं हैं, जैसे : खाना, फैसन, शिक्षा आदि, जिनमें निरंतर परिवर्तन हो रहे हैं। आम आदमी को इन अवसरों की समझ नहीं होती, किन्तु एक उद्यमी इनको अन्य व्यक्तियों की तुलना में शीघ्रता से भांप लेता है। अतः एक उद्यमी को अपनी आंखें और कान खुले रखने चाहिए तथा विचार शक्ति, सृजनात्मक और नवीनता की ओर अग्रसर रहना चाहिए।
- विचारों को कार्यान्वित करना : एक उद्यमी में अपने विचारों को व्यवहार में लाने की योग्यता होनी चाहिए। वह उन विचारों, उत्पादों, व्यवहारों की सूचना एकत्रित करता है, जो बाजार की मांग को पूरा करने में सहायक होते हैं। इन एकत्रित सूचनाओं के आधर पर उसे लक्ष्य प्राप्ति के लिए कदम उठाने पड़ते हैं।
- संभाव्यता अध्ययन : उद्यमी अध्ययन कर अपने प्रस्तावित उत्पाद अथवा सेवा से बाजार की जांच करता है, वह आनेवाली समस्याओं पर विचार कर उत्पाद की संख्या, मात्रा तथा लागत के साथ-साथ उपक्रम को चलाने के लिये आवश्यकताओं की पूर्ति के ठिकानों का भी ज्ञान प्राप्त करता है। इन सभी क्रियाओं की बनायी गयी रूपरेखा, व्यवसाय की योजना अथवा एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट ;कार्य प्रतिवेदनद्ध कहलाती है।
- संसाधनों को उपलब्ध कराना : उद्यम को सपफलता से चलाने के लिए उद्यमी को बहुत से साधनों की आवश्यकता पड़ती है। ये साधन हैं : द्रव्य, मशीन, कच्चा माल तथा मानव। इन सभी साधनों को उपलब्ध् कराना उद्यमी का एक आवश्यक कार्य है।
- उद्यम की स्थापना : उद्यम की स्थापना के लिए उद्यमी को कुछ वैधनिक कार्यवाहियां पूरी करनी होती हैं। उसे एक उपयुक्त स्थान का चुनाव करना होता है। भवन को डिजाइन करना, मशीन को लगाना तथा अन्य बहुत से कार्य करने होते हैं।
- उद्यम का प्रबंधन : उद्यम का प्रबंधन करना भी उद्यमी का एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। उसे मानव, माल, वित्त, माल का उत्पादन तथा सेवाएं सभी का प्रबंधन करना है। उसे प्रत्येक माल एवं सेवा का विपणन भी करना है, जिससे कि विनियोग किए धन से उचित लाभ प्राप्त हो। केवल उचित प्रबंध के द्वारा ही इच्छित परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
- वृद्धि एवं विकास : एक बार इच्छित परिणाम प्राप्त करने के उपरांत, उद्यमी को उद्यम की वृद्धि एवं विकास के लिए अगला ऊंचा लक्ष्य खोजना होता है। उद्यमी एक निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के पश्चात् संतुष्ट नहीं होता, अपितु उत्कृष्टता प्राप्ति के लिए सतत प्रयत्नशील बना रहता है।
ब्राउनी गति, Most Important
"छोटे आकार के कणों वाले किसी गैस के अन्दर ब्राउनी गति करते हुए एक बड़े कण (धूल कण) के गति का सिमुलेशन"
किसी तरल के अन्दर तैरते हुए कणों की टेड़ी-मेढ़ी गति को ही ब्राउनी गति (Brownian motion या pedesis) कहते हैं। ये कण तरल के तीव्रगामी कणों से टकरा-टकरा कर टेढ़ी-मेढ़ी गति करते हैं।
गति के इस पैटर्न में आमतौर पर एक तरल पदार्थ उप-डोमेन के अंदर एक कण की स्थिति में यादृच्छिक उतार-चढ़ाव होते हैं, इसके बाद किसी अन्य उप-डोमेन के लिए स्थानांतरण होता है। प्रत्येक बंद को नए बंद वॉल्यूम के भीतर अधिक उतार-चढ़ाव के बाद किया जाता है। यह पैटर्न एक निश्चित तापमान द्वारा परिभाषित थर्मल संतुलन पर एक तरल पदार्थ का वर्णन करता है। इस तरह के एक तरल पदार्थ के भीतर, प्रवाह की कोई तरजीही दिशा नहीं होती है (जैसा कि परिवहन की घटनाओं में)। अधिक विशेष रूप से, समय के साथ तरल के समग्र रैखिक और कोणीय गति शून्य रहते हैं। आणविक ब्राउनियन गतियों की गतिज ऊर्जा, आणविक घुमाव और कंपन के साथ मिलकर, एक तरल पदार्थ की आंतरिक ऊर्जा (एपरकार्टमेंट प्रमेय) के कैलोरी घटक तक होती है।
ब्राउनी गति करते हुए एक कण ने यह रास्ता तय किया है।
इस प्रस्ताव का नाम वनस्पतिशास्त्री रॉबर्ट ब्राउन के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पहली बार 1827 में इस घटना का वर्णन किया था, जबकि प्लांट के पराग में एक माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखते हुए क्लार्किया प्यूलेला पानी में डूब गया था। 1905 में, लगभग अस्सी साल बाद, सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक पेपर प्रकाशित किया, जहां उन्होंने पराग कणों की गति को व्यक्तिगत पानी के अणुओं द्वारा स्थानांतरित किया गया था, जो उनके पहले प्रमुख वैज्ञानिक योगदानों में से एक था। ब्राउनियन गति की यह व्याख्या इस बात के पुख्ता सबूत के रूप में है कि परमाणु और अणु मौजूद हैं और 1908 में जीन पेरिन द्वारा प्रयोगात्मक रूप से सत्यापित किया गया था। पेरिन को 1926 में "भौतिक पदार्थों की संरचना पर अपने काम के लिए" नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। परमाणु बमबारी के बल की दिशा लगातार बदल रही है, और अलग-अलग समय पर कण एक तरफ से अधिक एक तरफ मारा जाता है, जिससे गति की प्रतीत होता है यादृच्छिक प्रकृति होती है।
ब्राउनियन पैटर्न उत्पन्न करने वाले कई-बॉडी इंटरैक्शन को प्रत्येक शामिल अणु के लिए एक मॉडल लेखांकन द्वारा हल नहीं किया जा सकता है। परिणाम में, आणविक आबादी पर लागू होने वाले केवल संभाव्य मॉडल का वर्णन करने के लिए नियोजित किया जा सकता है। आइंस्टीन और स्मोलोचोव्स्की के कारण सांख्यिकीय यांत्रिकी के दो ऐसे मॉडल नीचे प्रस्तुत किए गए हैं। मॉडल का एक और, शुद्ध संभाव्य वर्ग स्टोचैस्टिक प्रक्रिया मॉडल का वर्ग है। दोनों सरल और अधिक जटिल स्टोकेस्टिक प्रक्रियाओं के अनुक्रम मौजूद हैं जो ब्राउनियन गति (सीमा में) को परिवर्तित करते हैं
धातु एवं अधातु
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अकार्बनिक रसायन में जिन तत्वों का उल्लेख है, उनमें से कुछ धातु हैं और कुछ अधातु। अधातु तत्वों में कुछ मुख्य ये हैं :
गैस - हाइड्रोजन, हीलियम, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फ्लुओरीन निऑन, क्लोरीन, आर्गन, क्रिप्टॉन, तथा ज़ीनॉन।
ठोस - बोरॉन, कार्बन, सिलिकन, फास्फोरस, गंधक, जर्मेनियम, आर्सेनिक, मोलिब्डेनम, टेल्यूरियम तथा आयोडीन।
द्रव - ब्रोमीन, मर्करी
धातुओं में केवल पारद ऐसा है जो साधारण ताप पर द्रव है। प्राचीन ज्ञात धातुएँ सोना, चाँदी, लोहा, ताँबा, वंग या राँगा, सीसा, जस्ता और पारा हैं। लगभग सभी सभ्य देशों का इन धातुओं से पुराना परिचय है। सोना और चाँदी स्वतंत्र रूप में प्रकृति में पाए जाते हैं। शेष धातुएँ प्रकृति में सल्फाइड, सल्फेट, या ऑक्साइड के रूप में मिलती हैं। इनसे शुद्ध धातुएँ प्राप्त करना सरल था। धातुओं के उन यौगिकों को जिनमें से धातुएँ आसानी से अलग की जा सकती थीं, हम अयस्क कहेंगे। इन अयस्कों को बहुधा कोयले के साथ तपा लेने पर ही धातु शुद्ध रूप में मुक्त हो जाती है।
माइकल फैराडे और डेवी के समय से विद्युत्धारा का उपयोग बढ़ा और जैसे-जैसे डायनेमो की बिजली अधिक सस्ती प्राप्त होने लगी, उसका उपयोग विद्युद्विश्लेषण में बढ़ने लगा। उसकी सहायता से लवणों में से (उनके विलयनों के विद्युद्विश्लेषण से अथवा ऊँचे ताप पर गलित लवणों के विद्युद्विश्लेषण से) अनेक धातुएँ पृथक् की जा सकीं। ताँबे का एक यौगिक तूतिया (कॉपर सल्फेट) है। पानी में बने इसे विलयन में से विद्युत् धारा द्वारा ताँबा पृथक् किया जा सकता है। विद्युत्धारा के प्रयोग से मैग्नीशियम, सोडियम, लिथियम, पोटैशियम, कैल्सियम, बेरियम आदि धातुएँ, उनके लवण को गलाकर, पृथक् की गई।
अकार्बनिक रसायन के प्रारंभिक युग में धातुओं के जिन यौगिकों को बनाने का विशेष प्रयास किया जाता था, वे ये थे : ऑक्साइड, हाइड्रॉक्साइड, फ्लुओराइड, क्लोराइड, ब्रोमाइड, आयोडाइड, सल्फाइड, सल्फाइट, सल्फेट, थायोसल्फेट, ऐसीटेट, ऑक्सलेट, नाइट्राइड, नाइट्रेट, सावनाइड, कार्बाइड, कार्बोनेट, बाइकार्बोनेट, फॉस्फेट, आर्सिनेट, टंग्स्टेट, मालिब्डेट, यूरेनेट। इन यौगिकों का तैयार करना साधारणतया सरल है। ऑक्साइड या कार्बोनेटों पर उपयुक्त अम्लों की अभिक्रिया से वे बनाए जा सकते हैं। विलेय लवणों के विलयनों में ऋण आयन (ऐनायन) मिलाकर इनमें से कुछ के अवक्षेप लाए जा सकते हैं, यदि ये अवक्षेप्य लवण पानी में अविलेय हों।
शीतकालीन अवकाश निरस्त, नियमित विद्यालय में हों उपस्थित
राज्य शासन द्वारा पूर्व निर्धारित शीतकालीन अवकाश २६ से ३१ दिसंबर २०२० तक घोषित किया गया था।
आगामी परीक्षा को दृष्टिगत रखते हुए, शासन द्वारा ये शीतकालीन अवकाश तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया गया है।
इसलिए सभी विद्यार्थियों एवं स्टाफ को सूचित किया जाता है कि नियमित रूप से विद्यालय में उपस्थित हों।
प्राचार्य,
शास. आर.के. गौतम उच्चतर माध्यमिक
विद्यालय, मुरवारी
उत्पादन की लागत : परिभाषा, प्रकार, गणना और विभिन्न लागतों का आपस में सम्बन्ध
उत्पादन लागत किसे कहते हैं? (production cost in hindi)
किसी भी वस्तु के उत्पादन के दौरान उस पर उस पर खर्च की गयी कुल राशी को ही लागत कहा जाता है। इसमें कई मूल्य होते हैं जैसे कच्चे माल पर खर्च, मशीन को चलाने का खर्च, कर्मचारियों की तनख्वाह आदि। इन सभी खर्चों को मिलाकर जो राशी होती है उसे उत्पादन लागत कहा जाता है।
उत्पादन लागत के प्रकार (theory of production and cost in hindi)
लागत कई प्रकार की होती है। इसके मुख्य भेद निम्न हैं :
1. प्रत्यक्ष लागत (direct costs) :
ऐसी लागतें जोकि किसी विशेष प्रक्रिया या उत्पाद से संबंधित होती है। उन्हें ट्रेस करने योग्य लागत भी कहा जाता है क्योंकि हम पता लगा सकते हैं की वे किस विशेष गतिविधि की वजह से हुई हैं। वे गतिविधि या उत्पाद में परिवर्तन के साथ भिन्न हो सकते हैं।
प्रत्यक्ष लागत के उदाहरण :
प्रत्यक्ष लागत के अंतर्गत उत्पादन से संबंधित विनिर्माण लागत, बिक्री से संबंधित ग्राहक अधिग्रहण लागत आदि शामिल हैं।
2. अप्रत्यक्ष लागत(indirect cost) :
अप्रत्यक्ष लागत प्रत्यक्ष लागत के विपरीत होती हैं। इस लागत का हम पता नहीं लगा सकते हैं की यह किस विशेष गतिविधि या उत्पाद से संबंधित है। इन्हें हम तरके न करने योग्य लागत भी कह सकते हैं।
अप्रत्यक्ष लागत के उदाहरण :
उदाहरण के लिए जैसे यदि आय बढ़ जाती है तो हमें ज्यादा कर देना पड़ता है। इसका हम यह पता नहीं लगा सकते हैं की यह किन कारणों से हुआ है।
3. सामजिक लागत(social costs) :
जैसा की हम नाम से ही जान सकते हैं ये लागत समाज से सम्बंधित होती हैं। ये लागत एक बिज़नस के विभिन्न कामों से होने वाले नुक्सान की भरपाई का मूल्य होती हैं। या फिर यदि कोई बिज़नस कोई सामजिक कार्य करता है तो यह भी उसी में आता है।
सामजिक लागत के उदाहरण :
इनमें सामाजिक संसाधन शामिल हैं जिनके लिए फर्म कोई खर्चा नहीं देता है लेकिन इनका प्रयोग करता है, जैसे वातावरण, जल संसाधन और पर्यावरण प्रदूषण आदि।
4. अवसर लागत (opportunity cost) :
अवसर लागत को वैकल्पिक आय भी कहा जाता है। मान लेते हैं हमारे पास एक मशीन है जिसके दो प्रयोग हैं। यदि हम इसका एक तरह से प्रयोग करते हैं तो दूसरी तरह प्रयोग करके होने वाले लाभ को गँवा देते हैं। दूसरी तरह का प्रयोग करके गँवाए लाभ को ही अवसर लागत कहा जाता है।
5. निश्चित लागत या स्थिर लागत(fixed cost):
निश्चित लागत वह लागत होती है जो उत्पादन के पैमाने के साथ नहीं बदलती हैं। ये लागत स्थिर साधनों जैसे स्थायी कर्मचारी, मकान आदि पर लगती हैं। किराया, मूल्यह्रास, स्थायी कर्मचारियों के वेतन और निधियों पर ब्याज जैसी लागतें निश्चित लागत के सभी उदाहरण हैं।
6. परिवर्तनीय लागत (variable cost) :
निश्चित लागत के विपरीत परिवर्तनीय लागत वे लागत होती हैं जोकि उत्पादन के पैमाने के साथ बढती एवं घटती हैं। बिजली, पानी का बिल, कच्चे माल का उपयोग, इन्वेंट्री और परिवहन लागत जैसी लागतें परिवर्तनीय लागत के उदाहरण हैं। हम देख सकते हैं कच्चा माल, बिजली का उपयोग आदि ऐसे संसाधन हैं जिनको बढाने से उत्पादन बढ़ता है। इनके बढ़ने से परिवर्तनीय लागा भी बढती है।
7. कुल स्थिर लागत (total fixed cost)
अल्पकाल में एक फर्म द्वारा उत्पदान के लिए अपने स्थिर संसाधनों पर किया गया कुल व्यय ही कुल स्थिर लागत कहलाता है। यह बढ़ते उत्पादन के साथ नहीं बदलता है एवं स्थिर रहता है। अतः इसके वक्र में यह सीढ़ी रेखा होता है। इसे TFC भी कहा जाता है।
8. कुल परिवर्तनीय लागत
अल्पकाल में एक फर्म द्वारा उत्पादन प्रक्रिया में अपने परिवर्तनीय संसाधनों पर किये गए कुल व्यय को कुल परिवर्तनीय लागत कहा जाता है। बढ़ते उत्पादन के साथ यह बढती है। अतः जब शून्य उत्पादन होता है तो परिवर्तनीय लागत भी शुन्य होती है। जैसे जैसे उत्पादन बढ़ता है यह बढती है।
9. कुल लागत :
अल्पकाल में फर्म द्वारा वहां किये गए कुल स्थिर लागत एवं कुल परिवर्तनीय लागत का योग कुल लागत कहलाता है। कुल लागत के अंतर्गत कुल स्थिर लागत एवं कुल परिवर्तनीय लागत आती हैं।
कुल लागत का सूत्र :
कुल लागत = कुल स्थिर लागत + कुल परिवर्तनीय लागत
10. औसत स्थिर लागत (average fixed cost)
औसत स्थिर लागत या AFC का मतलब होता है उत्पादन की गयी हर एक इकाई पर स्थिर लागत। इसका मतलब होता है की यदि हम एक हजार इकाइयों का उत्पादन करते हैं एवं हमारा कुल स्थिर लागत 1000 होती हैं तो फिर औसत स्थिर लागत 1 रूपए होगी।
11. सीमान्त लागत (Marginal Cost)
सीमान्त लागत या Marginal Cost(MC) कुल लागत में आया वह बदलाव होता है जोकि एक और इकाई के उत्पादन की वजह से होता है। जैसे जैसे उत्पादन बढ़ता है वैसे वैसे सीमान्त लागत बढती है।
सीमान्त लागत का सूत्र :
MC = TCn – TCn-1
या
MC = TVCn – TVCn-1
12. कुल औसत लागत (Average Total Cost)
कुल औसत लागत या Average Total Cost(ATC) का मतलब होता है की हर उत्पादन की गयी हर इकाई पर कुल कितना खर्चा हुआ है। इसमें कुल स्थिर एवं कुल परिवर्तनीय लागत शामिल होती हैं।
कुल औसत लागत का सूत्र
कुल औसत लागत = औसत स्थिर लागत + औसत परिवर्तनीय लागत
सीमान्त लागत और औसत लागत में सम्बन्ध (marginal cost and average cost in hindi)
जैसा की हम जानते हैं सीमान्त लागत एक और इकाई के उत्पादन से कुल लागत में आया बदलाव है एवं औसत लागत हर इकाई पर आया कुल खर्च है।
- यदि औसत लागत गिर रही है तो सीमांत लागत औसत से कम होनी चाहिए जबकि यदि औसत लागत बढ़ रही है तो सीमांत लागत औसत से अधिक होनी चाहिए।
- समान्त लागत जब ऊपर की और बढती है तो यह औसत लागत को अपने न्यूनतम बिंदु पर काटती है।
- यदि सीमांत लागत औसत परिवर्तनीय लागत से कम है, तो औसत लागत नीचे जाती है।
- यदि सीमांत लागत औसत परिवर्तनीय लागत से अधिक है, तो औसत लागत बढती है।
- यदि सीमांत लागत औसत परिवर्तनीय लागत के बराबर है, तो औसत लागत न्यूनतम होगी।